Mahakumbh Naga Sadhu का जीवन आने साधु की तुलना में बहुत कठिन होता है। नागा साधु(Naga Sadhu) का सीधा संबंध है शैव्य परंपरा की स्थापना से। आपको बता दें आठवीं शताब्दी में आदि गुरु शंकराचार्य ने जब अखाड़ा प्रणाली की स्थापना की तब सनातन धर्म की रक्षा के लिए ऐसे निपुण साधुओ का एक संगठन बनाया गया। इस संगठन में जो साधु शामिल हुए वो शास्त्र और शास्त्र दोनों में पारंगत थे। इन्हीं को नागा साधु या धर्म रक्षक कहा जाता है। अधिकतर Mahakumbh Naga Sadhu के दर्शन करना दुर्लभ है क्योंकि ये केवल महाकुंभ के आयोजन में ही दिखाई पड़ते हैं। आईए जानते हैं कैसे एक साधारण व्यक्ति बनता है Mahakumbh Naga Sadhu?
Mahakumbh Naga Sadhu मेले का मुख्य आकर्षण
Mahakumbh Naga Sadhu को वास्तविक जीवन में देखना बहुत दुर्लभ है इसलिए इनके दर्शन केवल महाकुंभ में होते हैं। प्रयागराज के संगम तट पर आयोजित होने वाला महाकुंभ(Mahakumbh) के शाही स्थान के दौरान आप नागा साधु को देख सकते हैं। इनका जीवन आने साधुओ की तुलना में बहुत कठिन होता है। ये भगवान शिव के अनुयाई होते हैं। उनके पास तीर, धनुष, तलवार, त्रिशूल और गदा जैसे हथियार आसानी से दिख जा सकते हैं। नागा साधुओं के दर्शन अधिकतर अर्ध कुंभ, सिंहस्थ कुंभ या महाकुंभ में ही होते हैं। सनातन धर्म की रक्षा के लिए इन साधुओं का संगठन तैयार किया है इन साधुओं के पास अस्त्र और शास्त्र होते हैं। इन्हे वेदों का भी ज्ञान होता है। ऐसी मान्यता है कि महाकुंभ में इनका दर्शन करना काफी शुभ होता है। ये आशीर्वाद भी दे सकते हैं और श्राप भी। अगर किसी ने भी उनके साथ छेड़छाड़ की तो उस इनके कोप से कोई भी नहीं बचा सकता।
Mahakumbh Naga Sadhu: आसान नहीं होता नागा साधु बनना
नागा साधु बनने के लिए 17 वर्ष का होना अनिवार्य है, इससे पहले कोई भी व्यक्ति Naga Sadhu नही बन सकता। इसकी अधिकतम उम्र सीमा है 19 वर्ष। Mahakumbh Naga Sadhu बनने के लिए तीन स्टेज से होकर गुजरना है पड़ता है महापुरुष, अवधूत और दिगंबर लेकिन इससे पहले की एक प्री स्टेज भी होती है जिसे इन साधुओं की भाषा में रहते हैं परख अवधि। इससे पूर्व अखाड़े में आवेदन करना पड़ता है।
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जो व्यक्ति आवेदन करता है उसे पहले तो लौटा दिया जाता है लेकिन जब वो हठ कर लेता है तो अखाड़े की तरफ से उसकी जांच पड़ताल की जाती है।
उसके घर जाकर घर वालों को बताते हैं कि आपका बेटा Mahakumbh Naga Sadhu बनना चाहता है। जब घर वाले मान जाते हैं तो फिर उम्मीदवार का क्रिमिनल रिकॉर्ड भी चेक किया जाता है। उसके बाद जो व्यक्ति नागा साधु बनना चाहता है उसे एक गुरु चुनाव होता है और अखाड़े में रहकर दो-तीन साल तक की सेवा करनी होती है। इन सेवा में शामिल है- अपने से वरिष्ठ सन्यासियों के लिए खाना बनाना, वो जहाँ रहते हैं उस स्थान की साफ सफाई करना, साधना और शास्त्रों का अध्ययन।
इनका जीवन सरल नहीं होता। भूख, नींद और कामवासना पर इन्हें काबू करना पड़ता है। इसके अलावा उनकी परीक्षा भी ली जाती है कि कहीं वो फिर से सांसारिक मोह माया के चक्कर में तो नहीं पड़ रहे हैं। उन्हें अपने परिवार की याद तो नहीं आ रही। अगर कोई भी व्यक्ति पाया जाता है कि वो भटक गया है तो उसे घर भेज दिया जाता है।
प्रथम चरण महापुरुष
Mahakumbh Naga Sadhu बनने के लिए जो परख अवधि में खरा उतरता है उसे फिर से सलाह दी जाती है कि वो सांसारिक दुनिया में वापसी कर ले लेकिन जब वह नहीं लौटता तो उसे प्रतिज्ञा दिलाई दी जाती है कि आगे चलकर वो सन्यासी का जीवन व्यतीत करेगा। महापुरुष चरण में उसके पांच संस्कार होते हैं। उसे विष्णु, शिव, शक्ति, सूर्य और गणेश को अपना गुरु बनाना पड़ता है और अखाड़े की तरफ से ही भगवा वस्त्र, नारियल, रुद्राक्ष, जनेऊ और भभूत दिए जाते हैं। इसके अलावा इन्हें Mahakumbh Naga Sadhu के प्रतीक और आभूषण भी मिलते हैं। इसके बाद जिसको गुरु बनाया है वो अपनी प्रेम कटारी से शिष्य की चोटी काट देते हैं।
दूसरा चरण अवधूत,
इस स्टेज में Mahakumbh Naga Sadhu बनने के लिए उसे सबसे पहले 4:00 उठाया जाता है और नदी के किनारे उनके शरीर से पूरे बाल हटाकर नवजात बच्चे जैसा कर दिया जाता है। नदी में स्नान करने के बाद उनको नई लंगोट धारण कराई जाती है। इसके बाद गुरु की तरफ से उन्हें जनेऊ भी पहनाया जाता है। गुरु उन्हें दंड, कमंडल और वस्त्र में भी देते हैं। ऐसी मान्यता है की महापुरूष को 3 दिन का उपवास रखना होता है और फिर खुद का ही श्राद्ध करना होता है। उन्हें 17 पिंडदान करने होते हैं 16 पूर्वजों का और 17 वा खुद का। जिससे वो सांसारिक बंधन से मुक्त हो जाते हैं और नया जीवन लेकर अखाड़े में फिर से लौटते हैं।
इसके बाद अखाड़े में आधी रात में विजया यज्ञ किया जाता है और गुरु की तरफ से एक बार फिर से कहा जाता है कि अगर वो चाहे तो सांसारिक जीवन में लौट सकते हैं। जब वो नहीं लौटते तो यज्ञ के बाद महामंडलेश्वर, आचार्य या पीठाधीश्वर की तरफ से महापुरुष को गुरु मंत्र दिया जाता है। अब महापुरुष को धर्म दया के नीचे बैठकर ओम नमः शिवाय मंत्र का जाप कराया जाता है।
अगले दिन सुबह 4:00 बजे महापुरुष को फिर से गंगा किनारे ले जाकर 108 डुबकियां लगवाई जाती है और दंड कमंडल का भी त्याग कर दिया जाता है। इस तरह से महापुरुष से अवधूत संयासी बनने की प्रक्रिया पूरी होती है। इस 24 घंटे की पूरी प्रक्रिया में उसे उपवास रखना होता है।
तीसरा चरण दिगम्बर
“भारत में महाकुंभ” के अनुसार अवधूत सन्यासी बनने के बाद तीसरे चरण दिगंबर की दीक्षा लेनी जरूरी होती है। यह दीक्षा शाही स्नान से एक दिन पहले ली जाती है। कुछ साधुओं की उपस्थिति में यह संस्कार काफी कठिन होता है।
अखाड़े की ध्वजा के नीचे 24 घंटे बिना कुछ खाए पिए उपवास रखना पड़ता है और फिर दिया जाता है तंगतोड़ संस्कार।
अखाड़े की भाले के सामने आग जलाई जाती है। अवधूत के सिर पर छिड़का जाता है जल और उसे बनाया जाता है नपुंसक। अब काम वासना से मुक्त हो चुके साधू को शाही स्नान करना पड़ता है। जिसके बाद सारे अवधूत बन जाते हैं नागा साधू (Mahakumbh Naga Sadhu)।
कुंभ की जगह के हिसाब से इन नागा साधुओं का नामकरण किया जाता है। प्रयागराज के कुंभ में नागा साधु को नागा, उज्जैन में खूनी नागा, हरिद्वार में बर्फानी नागा और नासिक में इन्हें खिचड़िया नागा के नाम से जाना जाता है।